ये घटना किसी एक किसान, किसी एक गांव या फिर किसी एक इलाके की नहीं है बल्कि ये किसी भी ऐसी जगह घटित हो सकती है जहां सरकारी पदासीन या उच्च वर्ग के लोगों का स्तर निम्न वर्ग के लोगों की तुलना में इतना बड़ा हो जाये कि वे निम्नवर्ग के लोगों की जान की कीमत पैसों से भी छोटी समझने लगें?
ब्रिजीश नगर निवासी एक किसान शिवप्रसाद ने बैंक से 4,80,000 का लोन लिया था, जिसको उसे ब्याज सहित लगभग 10 लाख चुकाना था। इस वर्ष जहां एक तरफ सर्दी के कारण उसकी सारी फसल जिसमें 4 एकड़ में चने, 1 एकड़ में सब्जी और 3 एकड़ में बोया गेहूं नष्ट हो गया वहीं दूसरी तरफ उसी गांव की महाराष्ट ऑफ बैंक के मैनेजर राजकुमार अहिरवार का लोन के चलते बीते 3 महीनों से किसी भी समय घर पर आकर डराना-धमकाना शिवप्रसाद के मानसिक तनाव का कारण बना और उसने मौत का विकल्प चुना। घटना के दिन दोपहर 2 बजे भी अहिरवार शिवप्रसाद से मिला और शाम 4 बजे षिवप्रसाद की लाष घर से थोड़ी दूर कुयें के पास मिली। इस सारे घटनाक्रम के बाद ये कह पाना मुश्किल था, कि आखिर घटना का जिम्मेदार है कौन?
ब्रिजीश नगर निवासी एक किसान शिवप्रसाद ने बैंक से 4,80,000 का लोन लिया था, जिसको उसे ब्याज सहित लगभग 10 लाख चुकाना था। इस वर्ष जहां एक तरफ सर्दी के कारण उसकी सारी फसल जिसमें 4 एकड़ में चने, 1 एकड़ में सब्जी और 3 एकड़ में बोया गेहूं नष्ट हो गया वहीं दूसरी तरफ उसी गांव की महाराष्ट ऑफ बैंक के मैनेजर राजकुमार अहिरवार का लोन के चलते बीते 3 महीनों से किसी भी समय घर पर आकर डराना-धमकाना शिवप्रसाद के मानसिक तनाव का कारण बना और उसने मौत का विकल्प चुना। घटना के दिन दोपहर 2 बजे भी अहिरवार शिवप्रसाद से मिला और शाम 4 बजे षिवप्रसाद की लाष घर से थोड़ी दूर कुयें के पास मिली। इस सारे घटनाक्रम के बाद ये कह पाना मुश्किल था, कि आखिर घटना का जिम्मेदार है कौन?
वो बैंक मैनेजर, जो घटना के बाद से ही छुट्टी पर चला गया और जिसका जवाब देने के लिये कोई तैयार नहीं या फिर सरकार की तरफ से पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध न कराये जाने से फसल का नष्ट होना, क्योंकि उस गांव में बिजली रात 12 बजे के बाद आती है और सुबह 6-7 बजे तक चली जाती है, जिस समय में खेत को न तो सींचा जा सकता है न ही और कुछ काम किया जा सकता है। वहीं अगर सिंचाई के लिये पानी की बात करें; तो गांव के लोगों को बारिश का इंतजार करना पड़ता है, जिससे वे लोग कुंयें में पानी बचाकर रखते हैं। इतनी सारी कठिनाइयों और असुविधओं के बीच जीते और देष में अन्न उपलब्ध कराने वाले इन किसानों की तरफ सरकार का ध्यान क्यों नहीं गया और दिन-ब-दिन बढ़ती किसान आत्महत्याओं के चलते अगर ध्यान गया भी, तो किसानों को मिला क्या-‘वादे और दिलासा’ !
जी हां! घटना के बाद दिलासा देने पहुंचे राजस्व मंत्री करनासिंह वर्मा ने बैंक लोन माफ करने के साथ-साथ बच्चों की मुफ्त पढ़ाई और साथ में मुआवजा दिलवाने के वादे किये। जिसके एक हफता बीत जाने के बाद भी इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया है। सबसे बड़ी विडम्बना है, कि बजाय उस परिवार या उसके जैसे परिवारों की सहायता करने के अगले दिन अखबार में आत्महत्या करने का कारण दिमागी रूप से असंतुलित होना बताया जाता है वो भी सरपंच रामसिंह वर्मा जो कि भाजपा पार्टी से संबंधित है उनके कहने पर कलक्टर द्वारा ये बयान दिया गया था। सरपंच, जो 10 से 15 दिन में भी शायद ही शिवप्रसाद से मिलते होंगे, वहीं उससे रोजाना मिलने वालों के बयान को प्रशासन या अखबार में कोई जगह नहीं मिलीं। एक परिवार या ऐसे कई परिवार जिन्हें आर्थिक सहायता की जगह मानसिक सहायता तो दूर, सही तरह से न्याय भी नहीं मिला; उल्टा मरने वालों को ही उसकी मौत का जिम्मेदार ठहरा दिया गया। जिससे षायद कोई संतुष्ट नहीं है सिवाय उन लोगों के जो असल में इसके जिम्मेदार है और सत्ता और शक्ति भी उन्हीं के हाथ में है। लेकिन प्रष्न ये उठता है कि इनके खिलाफ आवाज कौन उठायेगा? हम या आप में से कोई! तो फिर क्यों पहल का इंतजार किया जाता है और फिर नई घटनाओं के घटित होने के बाद इन्हें भी भुला दिया जाता है। अगर ऐसी घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाना हो या फिर दोहराव से बचाना हो, तो पहल हम में से ही किसी को करनी होगी?
जी हां! घटना के बाद दिलासा देने पहुंचे राजस्व मंत्री करनासिंह वर्मा ने बैंक लोन माफ करने के साथ-साथ बच्चों की मुफ्त पढ़ाई और साथ में मुआवजा दिलवाने के वादे किये। जिसके एक हफता बीत जाने के बाद भी इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया है। सबसे बड़ी विडम्बना है, कि बजाय उस परिवार या उसके जैसे परिवारों की सहायता करने के अगले दिन अखबार में आत्महत्या करने का कारण दिमागी रूप से असंतुलित होना बताया जाता है वो भी सरपंच रामसिंह वर्मा जो कि भाजपा पार्टी से संबंधित है उनके कहने पर कलक्टर द्वारा ये बयान दिया गया था। सरपंच, जो 10 से 15 दिन में भी शायद ही शिवप्रसाद से मिलते होंगे, वहीं उससे रोजाना मिलने वालों के बयान को प्रशासन या अखबार में कोई जगह नहीं मिलीं। एक परिवार या ऐसे कई परिवार जिन्हें आर्थिक सहायता की जगह मानसिक सहायता तो दूर, सही तरह से न्याय भी नहीं मिला; उल्टा मरने वालों को ही उसकी मौत का जिम्मेदार ठहरा दिया गया। जिससे षायद कोई संतुष्ट नहीं है सिवाय उन लोगों के जो असल में इसके जिम्मेदार है और सत्ता और शक्ति भी उन्हीं के हाथ में है। लेकिन प्रष्न ये उठता है कि इनके खिलाफ आवाज कौन उठायेगा? हम या आप में से कोई! तो फिर क्यों पहल का इंतजार किया जाता है और फिर नई घटनाओं के घटित होने के बाद इन्हें भी भुला दिया जाता है। अगर ऐसी घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाना हो या फिर दोहराव से बचाना हो, तो पहल हम में से ही किसी को करनी होगी?
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