ग्लोबलाइजेशन का दौर शुरू होने से अब तक का सफर तय करके आज के समय को तकनीकी युग कहा जाने लगा. गैजेट्स के इस्तेमाल से आज जमाना हाइटैक हो चला है. इन गैजेट्स में सबसे पहले तो लैपटाप, मोबाइल फोन फिर आइ पैड और पेन ड्राइव आदि आते है .
मोबाइल जहां युवाओं कि आधारभूत जरूरत बनता जा रहा है वही इन्टरनेट आज देश के लगभग हर कोने में पैर जमा रहा है. और अन्य उपकरण तो युवाओ के स्टैंडर्ड का पैमाना बन रहे है. इसका सटीक उदाहरण है सर्वे की वह रिपोर्ट जिसके अनुसार देश के लगभग 11„ करोड़ लोग इन्टरनेट का इस्तेमाल करते है वही टेबलेट का इस्तेमाल तो इस कदर बढ़ रहा है कि बाजार में आने से पहले ही उन्हें खरीदा जा चुका है जैसे आकाश कि 1† लाख ऐडवांस बुकिंग और बीसएनल के टेबलेट कि 1 लाख एडवांस बुकिंग हो चुकी हैं. टेबलेट क्रांति के इस दौर में चुनावी पार्टियां भी चुनावी वादों में टेबलेट देने कि बात करती है. जिसका उत्तर प्रदेश में सपा और पंजाब में भाजपा अच्छा उदाहरण है .
इन गैजेट्स ने देश, और देश से आगे विश्व को भी एक गांव में तब्दील कर दिया है .एक व्यक्ति जहां दूसरे व्यक्ति से नेट और मोबाइल से कभी भी और कही भी संपर्क कर सकता है वही गूगल बच्चो को जानकारी हासिल करने का सबसे आसान और सहज तरीका लगता है. आइ पैड जहां युवाओं के मनोरंजन का प्रमुख साधन है पैन ड्राइव वहीं उनकी मुश्किलों में काम आने वाली चाभी साबित होती है. अब अगर इन गैजेट्स कि अच्छाइयों से आगे बढ़ कर बुराइयों और कमियों पर जाये तो पाएंगे कि ये गैजेट्स हमें सीधे या परोक्ष रूप से नुकसान पंहुचा रहे है.
इन नकारत्मक प्रभावो में हम इन कुछ बातों पर भी गौर करते है जैसे गैजेट्स का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करने से अकेलेपन की स्थिति पैदा होना, बच्चों का पसंदीदा शौक वीडिओ गेम से उनकी कल्पनाशीलता और क्रिऐटीविटी में कमी होना एवं गैजेट्स के सामान्य से ज्यादा इस्तेमाल से तमाम शारीरिक बीमारियों का होना इत्यादि.
ये तो हो गइ गैजेट्स से होने वाले प्रत्यक्ष नुक्सान कि बात लेकिन कभी सोचा जा सकता है कि यही गैजेट्स हमारी मौत का कारण भी बन सकते है. गैजेट्स का सबसे ज्यादा हानि पहुंचाने वाला प्रभाव है, इसके प्रयोग के बाद बचा हुआ कचरा जिसे मिटाने या खत्म करने का कोइ रास्ता नहीं ढूंढा जा सका है जिसे इ-वेस्ट नाम दिया गया .
इ-वेस्ट- इ-वेस्ट वह घातक पदार्थ है जो इलेक्ट्रॉनिक यंत्रो के प्रयोग के बाद बेकार बचता है अर्थात वे यन्त्र जो खराब हो चुके हैं और जिन्हें इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसे जलाना और गाड़ना दोनों ही घातक सिद्ध होते है. इस गाड़ने से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति कम और पानी दूषित होता है वहीं इसे जलाने से जानलेवा बीमारी सिलिकासिस, अस्थमा और हवा में लेड पैदा होता है. इसके अलावा इस इ-वेस्ट से विषैली गैस और हजारों किस्म के नुकसानदेह रसायन पैदा होते है
इ-वेस्ट अचानक आने वाली समस्या नहीं है बल्कि यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के प्रयोग के साथ साथ चलती है जो 1‹‹å से व्याप्त है. इ-वेस्ट के रूप में हर साल 1‡ लाख केवल कम्प्यूटर कबाड़ में जाते है. „å1„ में ये इ-वेस्ट Š लाख टन होने का अंदाजा लगाया जा रहा है. इ-वेस्ट को नष्ट करने का कोर्इ कारगार उपाय अब तक सामने नहीं आ पाया है। हां कुछ सावधानियों के मद्देनजर इसे नियंत्रित किया जा सकता है. जो आपके इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के प्रयोग पर निर्भर करता है . जैसे सीमित उपकरणों का प्रयोग, उपकरणों का पूरा प्रयोग, जरूरत मंद उपकरणों का ही प्रयोग इत्यादि. इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है यदि हम इ-वेस्ट को रोक नहीं पा रहे तो कम से कम उसे और न बढ़ाये. क्योंकि किसी के मौत का कारण न बन कर आप एक जिंदगी बचा रहे होते है .
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