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शनिवार, 2 अप्रैल 2011

बेटियों के बिना होगा विकास?

बेटो की भीड़ में बेटी अकेली
बेटे के जन्म पर ढोलक बजना और बेटी के जन्म पर अफसोस करने जैसी बातें आपने पहली बार नहीं सुनी होगी, लेकिन ये नया जरूर है कि आज भी देष में ऐसी ही सोच अपनी जगह बनाये हुये है। अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्तर पर हुई जनगणना में भले ही साक्षरता दर में वृद्धि होकर 75 प्रतिषत हो गई हो और जनसंख्या वृद्धि में कमी आई हो। लेकिन सोच आज भी वही पुरानी है, कि पुरूष महिलाओं से श्रेष्ठ होते हैं। इसका प्रमाण भी सामने आया है कि हर 1000 बेटों पर 914 बेटियां का जन्म होंता है। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यदि महिलाओं का स्थान देखें तो वो हर 1000 पुरूषों पर 940 महिलायें हैं। देष में बिहार, गुजरात और जम्मू कष्मीर में पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या सबसे कम है। सरकार को यहां गौर करना चाहिये कि उनके द्वारा बनाई गई लाडली लक्ष्मी योजना, परिवार नियोजन जैसी तमाम योजनायें केवल बनाने मात्र से कोई हल नहीं निकलने वाला है, बल्कि उसे पालन कराने की आवष्यकता भी है। ये स्थिति देष के स्वतंत्र के बाद से षुरू हो गई थी। इसका मतलब तो यही निकाला जा सकता है कि देष ने इसी सोच के साथ विकास के दौर में कदम रखा था, जिसका पालन वो आज भी कर रहा है। यदि स्थिति में जल्द ही कोई परिवर्तन नहंी हुआ तो भारत माता के नाम से पुकारे जाने वाले भारत में मातायें ही नहीं बचेगीं।
 

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