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बुधवार, 20 जनवरी 2010

सवालों के घेरे में आडवानी सरकार

भाजपा सरकार का आरोप है की पार्टी की 30 साल से सेवा कर रहे पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी पुस्तक "जिन्नाह भारत विभाजन के आईने में " में जिन्नाह को महिमा मंडित कर सरदार वल्लभ पतिएल की छवि धूमिल किया है जिसके चले भाजपा पार्टी से उन्हें इस तर्ज पर विदा कर दिया की किसी भी सदस्य को पार्टी की केंद्रीय विचारधारा के खिलाफ लिखने का अधिकार नै है इधर पार्टी से निष्कासित होने के बाद जसवंत सिंह ने कहा की मुझे नै मालुम की वे किस मूल आस्था की बात कर रहे है और मैंने पार्टी की किस मुख्या मान्यता को क्षति पहुन्चैय है साथ ही आडवानी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा की पटेल ही सबसे पहले नेता थे जिन्होंने मुस्लिम लीग की बजाये आर एस एस को प्रतिबंधित किया था और आर एस एस कार्यकर्ता को जेल में डाला था बहरहाल जसवंत की इस बात से साफ़ जाहिर होता है की पटेल गी मुस्लिम समर्थक थे तो फिर क्यूँ हिन्दित्व का डंका पीटने वाली भाजपा पटेल का समर्थन कर रही है ?
और अगर भाजपा मुसलिम समर्थक भी है तो ये प्रश्न उठता है की गुजरात दंगों के समय आडवानी ने दंगों के दोषी नरेन्द्र मूडी को कोई करवाई लेने से अटल बीहारी बाजपाई जी को क्यूँ रोक दिया था ? जबकि उस समय वह एवं पूरा देश इस बात से वाकिफ था की नरेंद्र मूडी ही थे जिन्होंने पार्टी के स्वयं सेवकों व संघ के लोगों को मुस्लिमून के खिलाफ भड़काकर उन्हों तीन दिन तक नरसंघार करने की छूट दी थी .
जिससे इन दंगों में लगभग दो हजार मुसलमानों की बलि चदा दी गयी थी की और अगर आडवानी सरकार भारत को सेकुलर मानते हुवे यह कहती है की जसवंत सिंह ने भारत की महान विभूती वल्लभ भाई पटेल के देश के लिए अथक प्रयासों को भूलकर निंदा की है
जिस कारण उन्हें पार्टी से रुखसत कर दिया गया है तो बात यह उठती है की भाजपा उस समय कहाँ गयी थी जिस समय उन्हीं की पार्टी के युवा नेता वरुण गाँधी ने पीलीभीत में चुनाव के दौर्रण एक सभा को संबोधित करते हुवे गाँधी जी की इज्जत को सरे आम धोमिल कर दिया था
उस समय भाजपा के दिल में भारत की महान विभूति के प्रति कोई आदर सत्कार नै था . आडवानी सरकार अगर इन सभी दलीलों को मूल से ख़ारिज कर में डटी है .
तो जसवंत सिंह से पार्टी की सेवा चीनने का केवल उनके पास एक ही कारण रह जाता है की पार्टी यह पहले से ही विचार बना लिया था की जसवंत सिंह को अब जल्द ही पार्टी से रिटायर कर देना चाहिए अब इस बात से तो पार्टी ही ज्यादा वाकिफ होगी की अपनी किताब में जिन्नाह को हीरो बनाना के इल्जाम में जसवंत को पार्टी से हाँथ धोना पड़ा या फिर लोकसभा चुनाव की करारी मार झेलने के बाद हार का गुस्सा उन पर उतारा गया है .
बहरहाल अगर जसवंत सिंह की बात की जाए तो अब अपनी खीज भाजपा पर उतारने के लिए जसवंत सिंह घर का भेदी लंका धाये की नीति का रूप अख्तियार कर लिया है सभी ये जानते है की शतरंग के खेल में एक वजीर की तरह जसवंत सिंह का स्थान भाजपा में था . इस बात का खामियाजा भाजपा ने भुगतना भी शुरू भी कर दिया है और इस बात की पुस्ती तब हुयी जब जसवंत सिंह ने कहा की प्रधान मंत्र पद की महत्व्कांचा के चलते आडवानी के आदेश पर ही संसद में सांसदों ने नोट की गद्दी लहराकर सभा खंडित की गयी थी
इधर जसवंत सिंह के बाद जहाँ अरुण शीरी , बीसी खान्दोदी के बाद अब यशवंत सिन्हा ने पार्टी के नेत्रत्वा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया वहीँ आडवानी के उठाये गए इस कदम ने भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के ऊपर उनके पद के लिए तलवार लटका दी है अंत में इन सभी बातों का निष्कर्ष यह निकलता है की राजनीति की परीक्षा में फेल होते दिख रहे हैं