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शनिवार, 10 अप्रैल 2010

महिला आरक्षण बिल के लिए आगे का रास्ता कठिन के साथ साथ काफी लम्बा होगा

संसद की मर्यादाओं को शर्मसार करते हुवे एक बार फिर महिला आरक्षण बिल विधेयक ने अपने इतिहास को दोहरा दिया। ९ मार्च २०१० को संसद में इस बिल ने १८६ वोटों के समर्थन और विरोध में एक वोट के साथ अपना पहला पायदान तो लांघ लिया है लेकिन इस बिल का लोकसभा व कम से कम १५ राज्यों को विधानसभाओं के साथ राष्ट्रपति द्वारा हरी झंडी पाने तक के कठिन रस्ते को पार करना अभी बाकी है। बहरहाल विधेयक में लिखा गया है की जहाँ तक संभव हो सके लोकसभा व विधान सभाओं में दिल्ली सहित महिलाओं के लिए ३३ प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। लोकसभा व विधान सभाओं में एससी एसटी के लिए आरक्षित कुल सीटों में से एक तिहाई एससी एसटी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का बटवारा राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन प्रडाली के जरिये किया जा सकता है यानी एक बार महिला उम्मेदवार फिर पुरुष उम्मीदवारऔर फिर महिला उम्मीदवार व फिर पुरुष उम्मीदवार को सीट दी जायेगी। वहीँ सभी राज्यों की विधान सभाओं की प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिये भरी जाने वाली सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये सब बातें विधेयक के मुक्क्य बिंदु हैं लेकिन इन्हीं बिदुओं से उठी कुछ बातें जनता के मन को बार बार कचोड रहे हैं की ३३ प्रतिशत का मानदंड पूर करने के लिए करीब आधी सीटों को दोहरी सदस्यता प्रदान करनी होगी जिससे सांसदों की संख्या में ५० फीसदी बढ़ोत्तरी होजाएगी और ये नीता गन अपने कार्यों के प्रति कितने सजग हैं ये किसी से नहीं छुपा है, तो ऐसी स्थिति में क्या संसद के कामकाज और ज्यादा मुश्किल नहीं हो जायेंगे और अगर बात करें रोटेशन प्रडाली की तो किसी भी सांसद ये विधायक की अपने क्षेत्र में काम करने की काफी प्रबल इच्छा होती है ताकि अगली बार भी वह चुनाव जीतकर सांसद या विधायक बन सके हलाकि इसमें भी उसका स्वार्थ अवश्य छुपा होता है लेकिन वोट पाने के लिए वह उस क्षेत्र के विकास पर अवश्य ध्यान देगा लेकिन रोटेशन प्रडाली के मुताबिक उसे दुबारा उस क्षेत्र से चुनाव ही नहीं लड़ने को मिलेगा जिससे कहीं न कहीं उस नेता के मान को क्षति पहुँच सकती है और यही मार एक ही पार्टी के नेताओं में कोल्ड वार का रूप ले सकती है और तब स्थिति अधिक भयावह हो सकती है। वैसे पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किये गए एक अध्धयन में सिफारिश की गयी थी की पंचायत स्तर पर निर्वाचन क्षेत्रों को रोटेशन बंद कर देना चाहिए। इसका कारण यह पाया गया की केवल १५ फीसदी महिलायें ही दुबारा चुनाव जीत पायीं क्यूंकि जिन सीटों से उन्होंने पहले जीत हासिल की थी वे गैर आरक्षित हो गयी थीं। इसके अतिरिक्त जहाँ बिल का समर्थन कर रही पार्टियों ने, राजनीति में भी महिलाओं को पूर्ण भागीदारी का अवसर मिलेऔर वो भी देश की सत्ता अपने हाथों में ले सकेंगी जैसी बातों हो ढाल बनाकर तमाम तरह की मान्यताओं को शर्मसार व अपमानित करने के बाद बड़ी मिन्नतों से संसद में जिस विधेय को पारित करवाया उसी विधेय में लिखा है की महिला आरक्षण अधिनियम लागू होने के १५ साल बाद महिलाओं से लिए सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा और यही बात लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रही है की जिस बिल के लिए इन पार्टियों ने इतने जतन किये उन्हीं ने क्यूँ महिलाओं को राजनीति में केवल १५ साल तक ही टिकने की मोहलत दे डाली? वैसे ९ मार्च के पहले के दो दिनों में बिल विरोधी नेताओं ने चेयरमैन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हाथों से बिल की प्रतिलिपि छीन उसके टुकड़े हवा में उछालकर व स्पीकर का माइक तोडकर जिसतरह से संसद में विधायकों व सांसदों ने जो गुल खिलाये उससे साफ़ अनुमाल लगाया जा सकता है की महिला आरक्षण बिल के लिए अग्गे का रास्ता कठिन के साथ साथ काफी लंबा भी है.