
पिछले कई सालों से हिन्दी की इस अस्तित्व की लड़ाई कई पीढ़ियों ने लड़ी और जो अब भी जारी है। स्वतंत्रता के समय गांधीजी ने हिन्दी भाषा के अस्तित्व पर चिंता जताते हुये कहा था.
‘‘दुनिया से कह दो-गांधी अंग्रेजी नहीं जानता.........सारे संसार में भारत ही अभागा देश है जहां सारा कारोबार एक विदेशी भाषा में होता है......तो आइये हम प्रण करें कि हम अपना अधिकतम कार्य हिन्दी भाषा में करेंगे........स्वदेश , स्वराज्य और स्वभाषा का सम्मान रखेंगे । ’’ और इस गतिषील परिदृष्य में भी भाषा के अस्तित्व की समस्या कुछ खास कम न होने पर रामविलास शर्मा ने कहा है,

ये सच्चाई है की संविधान सभा की निर्णायक बैठक में सिर्फ एक मत से हिंदी को सर्व मत सम्मान हासिल हुआ। इसलिए खुद गुजराती भाशी होते हुए भी उन्होंने हिंदी सीखी और पूरे देश को सिखाने का बीड़ा उठाया। दक्षिण में हिंदी प्रचार सभा ने साम्राज्य विरोधी राष्ट्रीय एकता व एकजुटता की एक लहर सी पैदा कर दी।
डाक्टर रामविलास शर्मा ने इस सम्बन्ध में कहा है कि हिंदी भाषा को लेकर १९४५-१९४६ के दौरान गाँधी जी के विचारो में परिवर्तन आया। जब उन्होनें देखा की अंग्रेजो को खदेड़ने के लिए मुस्लिम लीग से समझौता करना पड़ेगा तब उन्होंने राजनीति में इस्तेमाल की जाने वाली समझौते की नीति को भाषा के क्षेत्र में लागू किया।

और सरकार भी खुद जागरूक होने के साथ साथ समाज को भी इस क्षेत्र में जागरूक करने का बीड़ा उठा लिया है। इसके लिए उसने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त नियम भी बनाये है। जैसे सरकारी काम काज के लिए मंत्रा राजभाषा सॉफ्टवेर, हिंदी सीखने वालों के लिए राजभाषा की वेबसाइट पर उपलब्धता, इ-महाशब्द कोष आदि. वहीँ प्राइवेट कंपनी भी अपनी तरीके से हिंदी पर अपनी पकड़ बना रहा है जिसके लिए गैजेट्स, मोबाइल में हिंदी माध्यम की सुविधा, गूगल ट्रांसलेटर और इ पेपर्स की सुविधा की सुविधा प्रदान की है और बाकी प्रयास जारी है
वहीं हिंदी भाषी भाषाई के प्रोत्साहन के लिए सरकार ने राज्य राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम पुरस्कारों की भी व्यवस्था भी की है। प्रदेश स्तर पर साहित्य अकादमी ने मध्य प्रदेश लेखकों के लिए दो पुरस्कारों की योजना बनाई है।
1- मैथिलीशरण गुप्त अवार्ड एवं २ लाख रूपये।
2- शरद जोशी सम्मान एवं १ लाख रूपये।

पहला अहिन्दी भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार व १ लाख रुपया।
दूसरा शोध के लिए अनुदान - इसमें हिंदी में शोध कार्य करने के लिए ३ यूनिवर्सिटीज् में जाने का भत्ता व डीए दिया जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्कोलरशिप की व्यवस्था भी की है, जिसके निम्न दो उदाहरण हैं-
१-फुल ब्राइट फारेन लैंग्वेज टीचिंग असिस्टेंन्ट्स प्रोग्राम- युनाइटेड स्टेट इण्डिया एजुकेशनल फाउण्डेशन यह प्रोग्राम चलता है। इसमें यू.एस. की कुछ यूनिवर्सिटीज् शामिल हैं। यहाँ हिंदी पढ़ाने का इच्छुक कोई भी शिक्षक जा सकता है उसे वेतन के साथ साथ रहने व आने जाने का किराया भी उपलब्ध कराया जायेगा।
२-टेक्सास यूनिवर्सिटी -इसमें रिसर्च करने के इच्छुक लोग यदि योग्य है तो उन्हें १००प्रतिशत स्कालरशिप मिलेगी।
इन सबके अलावा राजीव गाँधी हिंदी लेखन पुरस्कार की भी व्यवस्था की गई है जो कार्यरत और सेवा निवृत्त शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारी को हिंदी लेखन के लिए दिया जाता है जिसमे कम से कम १०० पेज की किताब हिंदी साहित्य को छोड़कर होनी चाहिए। इसमें ४ पुरस्कारों की व्यवस्था है। प्रथम को ४० हजार, दितीय को ३० हजार और तृतीय को २० हजार एवं प्रोत्साहन पुरस्कार के तौर पर १० हजार रूपये देने की व्यवस्था है।
..अगर सरकार और समाज के इस प्रकार के प्रयास लगातार किये जाते रहे तो हिंदी का खोया हुआ स्थान और सम्मान वापस मिलने के आसार लगाये जा सकते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें