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शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

भूमि व्यक्तिगत संपत्ति नहीं: विनोबा भावे


 ‘‘वायु तथा जल की भांति भूमि का भी स्वामी भगवान होता है। इसको व्यक्तिगत सम्पत्ति मानने का अर्थ है भगवान की इच्छा का विरोध करना। ऐसे विरोध से कोई प्रसन्नता नहीं प्राप्त कर सकता’’,
          ऐसे विचारों से अपने भूदान आंदोलन को सफल बनाने वाले विनोबा भावे को महात्मा गांधी द्वारा ‘प्रथम सत्याग्रही’ और भारत के ‘धार्मिक गुरु’ का खिताब भी मिला है। आचार्य की उपाधि प्राप्त विनोबा भावे का नाम उस समय बहुचर्चित हो गया, जब भारत के राजनीतिक क्षितिज पर महात्मा गांधी ने उनको व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिये ‘प्रथम सत्याग्रही’ घोषित  किया। हजारों-लाखों लोगों में से उनका चुना जाना उनके लिये एक अति महत्वपूर्ण घटना रही। धीरे-धीरे वे आगे बढ़ते रहे और जीवन-पर्यन्त रचनात्मक कार्यों में एक से बढ़कर एक उपलब्धि पाई। जिसमें हरिजनों तथा राष्ट्रभाषा हिन्दी एवं गो सेवा के क्षेत्र में आचार्य विनोबा भावे का योगदान असाधारण है।
         व्यापक दृश्टिकोण और सद्भावना को अपने जीवन का मूलमंत्र मानने वाले विनोबा भावे का वास्तविक नाम ‘विनायक हरि भावे’ था। इनका जन्म 11 सितंबर, 1895 को नासिक (महाराष्ट्र ) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। विनोबा भावे के दोनों भाईयों शिवाजी भावे और बाल्कोबा भावे भी स्वतंत्रता सेनानी बनकर समाज-सेवा में अपना जीवन-यापन किया। 
         विनोबा भावे का धार्मिक दृश्टिकोण अत्यन्त व्यापक था। वे अहिंसा  को सबसे बड़ी शक्ति और सत्य को सबसे बड़ा हथियार मानते थे। विनोबा भावे ने छोटी उम्र में ही रामायण, महाभारत और गीता पढ़ ली थी। जिसमें से वह गीता से सर्वाधिक प्रभावित हुये थे। उन्होंने गीता का कई भाषाओं  में अनुवाद भी किया था। उनका मानना था कि गीता के उपदेशो में जीवन का पूर्ण सार और सारे समस्याओं का समाधान समाहित है। विनोबा भावे का कहना था कि उनकी मानसिकता और जीवनशैली को सही दिशा देने और उन्हें आध्यात्म की ओर प्रेरित करने में उनकी मां रुक्मिणी देवी का ही योगदान है। 
        विनोबा भावे के अंदर धार्मिक प्र्रवृत्ति के साथ-साथ समाज सेवा का जज्बा भी था। जिसके चलते वे कई गांवों में गये। वहां जाकर उन्होंने लोगों की जीवन-षैली और समस्याओं के बारे में जाना। विनोबा भावे का मानना था कि कई बार लोगों को अपनी क्षमताओं के बारे में पता नहीं होता, जिसके कारण वे समस्याओं से घिरे रहते हैं। लोगों की उनकी क्षमताओं से अवगत कराने के लिये ही उन्होंने ‘सर्वोदय आंदोलन’ चलाया था। जिसका उद्देश्य लोगों को जगाकर उनमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करना था। 

षिक्षा- 
विनोबा भावे अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के थे। उनमें चीजों को समझने और समझाने में महारत् हासिल थी। वे शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखते थे। बल्कि उनका मानना था कि शिक्षित व्यक्तियों को सीखी हुई चीजों को दूसरों तक तो पहुंचाना ही चाहिये साथ ही जीवन में उसे अपनाना भी चाहिये। जिसका एक उदाहरण है कि जब गणित में महारत् हासिल विनोबा भावे अपनी दसवीं की परीक्षा देने मुंबई जा रहे थे। तब ट्रेन मे उन्होंने गांधी जी का षिक्षा पर प्रकाशित एक लेख पढ़ा, जिसका उन पर इस कदर प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपने सारे दस्तावेज जला दिये।
         विनोबा भावे को लगभग सभी भारतीय भाषाओं का ज्ञान था, जिसमें कन्नड़, हिंदी, उर्दू, मराठी, संस्कृत षामिल थे। उनके अनुसार ‘कन्नड़ लिपि’ विश्व की  सभी लिपियों की रानी है।

भूदान आंदोलन-
वर्श 1951 में जब रियासत स्वतंत्र भारत का अभिन्न बन गई थी। हैदराबाद में अशाति का साम्राज्य था और भूमिहीन किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। तब उन्होंने पैदल यात्रा करने की ठानी। इस दौरान वे लाखों लोगों से मिले। इस पदयात्रा मंे उन्होंने लोगों को भूमिदान का महत्त्व समझाया। हिया देयम, भियोदेयम, श्रिया देयम के सिध्दांतों का अनुगमन करते हुये एक अतिरिक्त पुत्र के रुप में उन्हांेने अपना हिस्सा दरिद्र नारायण के लिये मांगा। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता जय प्रकाश नारायण भी 1953 में भूदान आंदोलन में शामिल हो गए थे। आंदोलन के शुरुआती दिनों में विनोबा भावे ने तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 गांवो की यात्रा की। वे सर्वप्रथम तेलंगाना गये, जहां उन्हांेने लगभग 100 एकड़ भूमि दान मंे प्राप्त की। पूरे हैदराबाद से उन्होंने करीब 12000 एकड़ भूमि दान में प्राप्त की। लोगों की इस प्रकार प्राप्त हो रहे सहयोग से प्रभावित होकर उन्होंने आतंकवादियों को एक सलाह दी कि उन्हें रात में नहीं बल्कि दिन में आना चाहिये और प्रेम से भूमि की मांग करनी चाहिये। निःसंदेह भूदान में प्राप्त जमीन का एक बड़ा हिस्सा विवादास्पद था। उत्तरप्रदेष में भूदान में 30,000 एकड़ भूमि, 232 कुएं, 34 जोड़े बैल, 7 भवन, 11 हल एवं 130000 ईंट प्राप्त किया। 1959 तक कुल 8 लाख एकड़ भूमि दान में प्राप्त हो गई थी। बिहार एवं उत्तर प्रदेश में इस इस आंदोलन का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। 1955 तक आते आते आंदोलन ने एक नया रूप धारण  कर लिया। इसे ग्रामदान के रूप में पहचाना गया। इसका अर्थ था- ‘सारी भूमि गोपाल की’। 1960 तक देश में 4500 से अधिक ग्रामदान गांव हो चुके थे। 1946 गांव उड़ीसा के थे जब की महाराश्ट्र दूसरे नम्बर पर था। 

गांधी जी और विनोबा भावे-
7 जून 1916 को पहली बार विनोबा भावे गंाधी जी से मिले। पांच वर्श बाद 1921 में विनोबा भावे ने महात्मा गांधी के वर्धा स्थित आश्रम के प्रभारी का स्थान ले लिया। इन्होंने यहां से महाराष्ट्र  धर्म के नाम से मराठी भाषा की एक मासिक पत्रिका निकाली। वर्ष 1932 में आग्रेजी सरकार  के विरोध में आवाज उठाने के आरोप में विनोबा भावे को धुलिया जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के दौरान उन्होंने साथी कैदियों को मराठी भाशा में ही भागवत गीता के उपदेषों को बताया। 5 अक्टूबर 1940 को गांधी जी ने उन्हें पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रूप में चुना।

सम्मान- 
वर्श 1958 में ‘अंतरर्राश्ट्रीय रेमन मैगसेसे’ पुरस्कार प्राप्त करने वाले विनोबा भावे पहलेे व्यक्ति थे। ताउम्र और मरणोपरांत समाज में अपनी जगह बनाने वाले विनोबा भावे को उनके मरने के बाद वर्श 1983 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।

विनोबा भावे का निधन-
एक गंभीर बीमारी के चलते उन्होंने जीवन और मृत्यु में मृत्यु को चुना। नवंबर, 1982 में विनोबा भावे अत्यधिक बीमार पड़ गए। सही होने के आसार के न देखते हुये उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। जिससे 15 नवंबर 1982 को उनका निधन हो गया।     

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